गुरुवार, 17 नवंबर 2016

धर्मराजेश्वर मन्दिर और बौद्ध गुफा शृंखला: प्रकृति के सुरम्य अंचल में आस्था और सभ्यता का अनुपम दृष्टान्त - प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा | Dharmarajeshwar Temple and Buddhist Cave Series: A Unique Example of Faith and Civilization in the Picturesque Region of Nature - Prof. Shailendrakumar Sharma


धर्मराजेश्वर मन्दिर और बौद्ध गुफा शृंखला : प्रकृति के सुरम्य अंचल में आस्था और सभ्यता का दृष्टान्त | Dharmarajeshwar Temple and Buddhist Cave Series: A Unique Example of Faith and Civilization in the Picturesque Region of Nature

प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा
Prof. Shailendrakumar Sharma

मालवा की समृद्ध स्थापत्य कला विरासत के अनन्य प्रतीक धर्मराजेश्वर के शिला निर्मित मन्दिरों और बौद्ध विहारों का अवलोकन स्मरणीय अनुभव बन पड़ा। मध्य प्रदेश के मन्दसौर जिलान्तर्गत शामगढ़ के समीप चन्दवासा (गरोठ) की मनोरम पहाड़ियों को काट कर बनाए गए ये आराधनालय वैश्विक कला विरासत का बेजोड़ उदाहरण हैं। बौद्ध वाङ्मय में उल्लिखित यह स्थान प्राचीन काल में चन्दनगिरि के नाम से प्रसिद्ध था, जिसका प्रभाव समीपस्थ कस्बे चन्दवासा (चन्दनवासा) की संज्ञा में देखा जा सकता है।

लोक किंवदंतियों के बीच भीम द्वारा निर्मित देवालय और गुफाओं के रूप में इनकी चर्चा रही है। धर्मराजेश्वर मन्दिर की तुलना एलोरा के कैलाश मन्दिर से की जाती हैं, क्‍योकि यह मन्दिर भी कैलाश मन्दिर के समान ही एकाश्म शैली में निर्मित है। 8वीं शती में निर्मित इस मन्दिर के लिए विराट पहाड़ी को खोखला कर ठोस प्रस्‍तर शिला को देवालय में बदला गया है। अपनी विशालता, सौंदर्य और कलात्मक उत्‍कृष्‍टता के लिये इस मन्दिर की प्रसिद्धि है, जो 54 मीटर लम्‍बी, 20 मीटर चौडी और 9 मीटर गहरी चट्टान को तराशकर बनाया गया है। उत्तर भारत के मन्दिरों की तरह इस मन्दिर में भी द्वार-मण्‍डप, सभा मण्डप, अर्ध मण्डप, गर्भगृह और कलात्मक शिखर निर्मित हैं।








मध्‍य में एक विशाल मन्दिर है, जिसकी लम्‍बाई 14.53 मीटर तथा चौडाई 10 मीटर हैं, जिसका उन्‍नत शिखर आमलक तथा कलश से युक्‍त है। मन्दिर में महामण्‍डप की रचना उत्कीर्ण की गई है, जो पिरा‍मिड के आकार में है। धर्मराजेश्वर मन्दिर की सुन्‍दर तक्षण कला यहाँ आने प्रत्येक व्यक्ति को पत्‍थर में काव्य का आभास कराती है। प्रतिहार राजाओं की स्थापत्य कलाभिरुचि यहाँ देखने को मिलती है। प्रशस्त शिवलिंग और चतुर्भुज श्रीविष्णु की प्रतिमा मुख्य मंदिर में स्थापित हैं। मुख्य मंदिर के चारों ओर बने छोटे-छोटे मंदिरों में भी 8वीं शताब्दी की मूर्तियां हैं। इनमें एक मूर्ति दशावतार भगवान विष्णु की है, जो तीन भागों में टूटी हुई है। पहले विष्‍णु मंदिर बनाया गया था, जिसे बाद में शिव मंदिर का रूप दिया गया।






 धर्मराजेश्वर मंदिर का शिखर


काउजन के अनुसार पहले यह वैष्णव मंदिर था। बाद में शैव मंदिर में बदल दिया गया। मुख्य मंदिर के गर्भगृह में मध्य में शिवलिंग विराजमान है तथा दीवार पर विष्णु की प्रतिमा है। मुख्य द्वार पर भैरव तथा भवानी की प्रतिमाएँ हैं, जिनके कलात्मक स्वरूप को सिन्दूर से अलग रूप दे दिया है। मुख्य मंदिर के आसपास सात छोटे मंदिर हैं। इनमें एक में सप्तमातृकाओं सहित शिव के तांडव नृत्य का अंकन है। लघु मन्दिरों में शेषशायी विष्णु, दशावतार के पट्ट भी हैं। वहीं कुछ लघु मंदिर प्रतिमा रहित हैं। प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर यहां मेले का आयोजन किया जाता है।




धर्मराजेश्वर दिल्ली-मुम्बई रेल मार्ग पर स्थित शामगढ़ से 20 किमी दूर है। इस जगह को भीम नगरा भी कहते है। जनश्रुति के अनुसार भीम ने चंबल नदी से विवाह करना चाहा, तो चंबल ने एक ही रात में पूरा शहर बसाने की शर्त रखी, किन्तु शर्त पूरी नहीं हो सकी और भीम पत्थर का हो गया। धमनार की गुफाएं वास्तव में 4-5 वीं शती में निर्मित बौद्धविहार हैं। 





धर्मराजेश्वर मंदिर का गलियारा 








इतिहासकारों में सबसे पहले जेम्स टाड 1821 ई में यहां आये थे। अपने जैन गुरु यतिज्ञानचन्द्र के कथन पर इन्हें जैन गुफा बताया। जेम्स टाड ने अश्वनाल आकृति की शैल शृंखला में लगभग 235 गुफाओं की गणना की थी, किन्तु जेम्स फर्गुसन को 60-70 गुफाएं ही महत्वपूर्ण लगीं।



























लगभग 2 किमी के घेरे में फैली गुफाओं में भी 14 गुफाएं विशेष उल्लेखनीय हैं। छठी गुफा बड़ी कचहरी के नाम से पुकारी जाती है। यह वर्गाकार है तथा इसमें चार खंभों का एक दालान है। सभा कक्ष 636 मीटर का है। 8वीं गुफा छोटी कचहरी कहलाती है। 9वीं गुफा में चार कमरे हैं। चौथे कमरे में पश्चिम की तरफ एक मानव आकृति उत्कीर्ण है। 10वीं गुफा राजलोक रानी का महल अथवा 'कामिनी महल' के नाम से प्रसिद्ध है। 11वीं गुफा में चैत्य बना हुआ है। इसके पार्श्व में मध्य का कमरा बौद्ध भिक्षुओं की उपासना और ध्यान का स्थान था। पश्चिम की ओर बुद्ध की दो प्रतिमाएं उत्कीर्ण हैं। 12वीं गुफा हाथी बंधी कहलाती है। इसका प्रवेश द्वार 16 1/2 फिट ऊंचा है। 13वीं गुफा में कई बड़ी-बड़़ी बुद्ध मूर्तियां हैं।





बौद्ध विहार







गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद आज से लगभग 1500 साल पहले बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार और व्यापार के लिए एक देश से दूसरे देश तक भ्रमण करने वाले व्यापारियों की मदद ली जाती थी। गुप्त काल में व्यापारियों के लिए समुद्र तट तक पहुंचने के प्रचलित मार्ग में ही मंदसौर का धमनार बौद्ध विहार भी बना था। बौद्ध धर्म की शिक्षा-दीक्षा के लिए यहाँ विहार हुआ करता थे, जहां व्यापारी भी कुछ समय ठहर कर विश्राम करते थे।


प्रो शैलेन्द्रकुमार शर्मा
आचार्य एवम् 
विभागाध्यक्ष
कुलानुशासक
विक्रम विश्वविद्यालय
उज्जैन



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